शणमुखानंद हॉल (Sri Shanmukhananda Hall) को भारत का सबसे बड़ा और एशिया के सबसे प्रसिद्ध ऑडिटोरियम्स में गिना जाता है। मुंबई के सायन इलाके में स्थित यह हॉल न केवल सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है बल्कि भारतीय कला, संगीत और समाज की विविधता का भी शानदार प्रतीक है। इसकी स्थापना और विकास की कहानी प्रेरणादायक है जिसमें दक्षिण भारतीय समुदाय, प्रमुख उद्योगपतियों और नेतृत्त्व के योगदान की झलक दिखती है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
शणमुखानंद हॉल का निर्माण श्री शणमुखानंद फाइन आर्ट्स एवं संगीत सभा के नेतृत्व में 1963 में हुआ था। इसकी नींव 1959 में रखी गई थी और भवन का उद्घाटन महाराष्ट्र की तत्कालीन राज्यपाल विजयलक्ष्मी पंडित द्वारा हुआ। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रोत्साहन और उद्योगपति पल्लोनजी मिस्त्री के आर्थिक सहयोग से यह प्रोजेक्ट संभव हो सका। हॉल बनने के बाद यह देश का सबसे बड़ा ऑडिटोरियम बना जिसकी तुलना रॉयल एल्बर्ट हॉल, सिडनी ओपेरा हाउस तथा न्यूयॉर्क कार्नेगी हॉल से की जाती है।
संरचना एवं विशेषताएँ
कुल बैठने की क्षमता: 2763-3020 सीटें (विभिन्न स्रोतों में मामूली अंतर है, पर औसत क्षमता 2768 मानी जाती है)।[
- ग्राउंड फ्लोर: 1462-1467 सीटें
- प्रथम तल: 791 सीटें
- द्वितीय तल: 510 सीटें
हॉल का मंच बहुउद्देश्यीय है जिसमें 30 फीट चौड़ाई और 20 फीट गहराई है जबकि बाहरी क्षेत्र 40 फीट चौड़ा और 10 फीट गहरा है। ऑडिटोरियम का वास्तु भारतीय मंदिर शैलियों से प्रेरित है और इसकी ध्वनि प्रणाली व लाइटिंग उत्कृष्ट मानी जाती है।
सांस्कृतिक महत्व
शणमुखानंद हॉल भारतीय शास्त्रीय संगीत, नृत्य, नाटक, राजनीतिक सम्मेलन और सामाजिक आयोजनों का प्रमुख मंच है। उस्ताद जाकिर हुसैन, एम एस सुब्बुलक्ष्मी जैसे दिग्गज यहां प्रस्तुति दे चुके हैं। यहां राष्ट्र स्तर के राजनीतिक अधिवेशन जैसे कि 1964 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का अंतिम महत्त्वपूर्ण अधिवेशन भी हुआ जिसे पं. नेहरू ने चुना था।
आधुनिक रूप एवं गतिविधियाँ
1990 में भयंकर आग के बाद इसे पुनर्निर्मित कर 1998-99 में इसे आधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया। आज यहां बड़े सांस्कृतिक, सामाजिक और शैक्षिक आयोजन, संगीत प्रतियोगिताएं, मेडिकल शिविर आदि नियमित रूप से आयोजित होते हैं। शणमुखानंद हॉल अपने नाम के अनुरूप भारतीय सांस्कृतिक प्रवाह को मुंबई में जीवंत रखने वाला प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
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