सोनपुर पशु मेला जिसे हरिहर क्षेत्र मेला भी कहा जाता है, भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। यह बिहार के सोनपुर में हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा और गंडक नदी के संगम स्थल पर आयोजित होता है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
सोनपुर पशु मेला का इतिहास सैकड़ों वर्षों पुराना है।। इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ें हरिहरनाथ मंदिर से जुड़ी हैं जहां भगवान विष्णु और शिव की संयुक्त पूजा होती है। गज-ग्राह की पौराणिक कथा और कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान व पूजा की परंपरा इस मेले को अत्यंत पवित्र बनाती है।
मेले की प्रमुख विशेषताएँ
- मेला एक महीने तक चलता है और देश-विदेश से हजारों पर्यटक व व्यापारी यहां आते हैं।
- एशिया में हाथियों का सबसे बड़ा व्यापार केंद्र कभी यहीं था। आज भी घोड़े, गाय, भैंस और अन्य पशुओं की खरीद-बिक्री यहां आकर्षण का केंद्र है।
- इसमें स्थानीय हस्तशिल्प, खिलौने, कपड़े, सर्कस, नौटंकी, पारंपरिक दंगल, और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
आधुनिक परिवेश में मेला
हाल के वर्षों में वन्यजीव अधिनियम के कारण हाथी और पक्षियों की बिक्री पर रोक लग गई है लेकिन पारंपरिक पशु, घोड़े और गाय-भैंस का व्यापार जारी रहता है।। प्रशासन द्वारा सुरक्षा, स्वच्छता, विदेशी पर्यटकों के लिए टेंट, और रेलग्राम जैसी विशेष व्यवस्थाएँ की जाती हैं।
सोनपुर मेले का इतिहास और उत्पत्ति कैसे हुई?
सोनपुर पशु मेले का इतिहास अत्यंत प्राचीन एवं रोचक है। इसका जन्म धार्मिक मान्यताओं, ऐतिहासिक घटनाओं और व्यापारिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है।
उत्पत्ति और पौराणिक प्रसंग
- सोनपुर मेला हरिहर क्षेत्र मंदिर से जुड़ा है जहाँ गज-ग्राह कथा का धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि यहाँ भगवान विष्णु ने अपने भक्त गजेंद्र (हाथी) को ग्राह (मगरमच्छ) से मुक्ति दिलाई थी। इसी घटना के बाद यह स्थान हाथी पालकों के लिए तीर्थस्थल बन गया।
- कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर गंगा-गंडक संगम पर स्नान और हरिहरनाथ मंदिर में पूजा की परंपरा रही है। इसी के साथ मेला प्रारंभ हुआ।
व्यापारिक और ऐतिहासिक विकास
- करीब 2500 वर्ष पूर्व से पशुधन की अदला-बदली, व्यापार और उत्सव के रूप में सोनपुर मेला आयोजित होता आया है।
- चंद्रगुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुँवर सिंह ने भी यहाँ से हाथी और घोड़े खरीदे थे। अंग्रेज अफसर रॉबर्ट क्लाइव ने सन 1803 में यहाँ बड़ा अस्तबल बनवाया था।
- पूर्व में मध्य एशिया के व्यापारी भी मेला में आते थे और हजारों हाथियों का क्रय-विक्रय होता था।
आधुनिक युग में परिवर्तन
- वन्य पशु अधिनियम लागू होने के बाद (2007 से) हाथियों की खऱीद-बिक्री बंद हो गई। अब भी पशु प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और पर्यटन इसकी पहचान बने हुए हैं।
- मेले का संचालन बिहार सरकार, जिला प्रशासन और स्थानीय धार्मिक ट्रस्ट की देखरेख में होता है जिसमें आधुनिक सुविधाएं और सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है।
सोनपुर पशु मेले से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
बिहार का सबसे बड़ा पशु मेला कहाँ लगता है?
सोनपुर पशु मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है तथा यह मेला बिहार के सोनपुर शहर में लगता है।
सोनपुर पशु मेला कहाँ आयोजित होता है?
सोनपुर मेला भारत के बिहार राज्य के सोनपुर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) में लगता हैं तथा यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हैं।
बिहार का सबसे बड़ा पशु मेला कौन सा है?
सोनपुर मेला एशिया के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक है जो दो विशाल नदियों, गंगा और गंडक के संगम पर आयोजित होता है। प्राचीन काल से ही पशुधन व्यापार के लिए लोकप्रिय, यह एक महीने तक चलने वाला आयोजन नवंबर माह में कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आयोजित होता है।
भारत का सबसे बड़ा पशुओं का मेला कौन सा है?
भारत का सबसे बड़ा पशु मेला सोनपुर, बिहार में लगता है। यह मेला गंगा और गंडक नदियों के संगम पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होता है और यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला भी है।
सोनपुर किस जिले में पड़ता है?
सोनपुर, भारत के बिहार राज्य के सारण ज़िले में स्थित एक शहर है।
सोनपुर मेला का दूसरा नाम क्या है?
सोनपुर मेले को हरिहर क्षेत्र मेला और छतर मेला के नाम से भी जाना जाता है।


