क्या आप जानते हो आर्थिक भूगोल के जनक कौन हैं?

father of economic geography

आर्थिक भूगोल का परिचय

आर्थिक भूगोल, भूगोल और अर्थशास्त्र दोनों का एक संयुक्त और महत्वपूर्ण अध्ययन क्षेत्र है। यह यह समझने में सहायता करता है कि पृथ्वी की भौगोलिक विशेषताएँ कैसे आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती हैं और मानव द्वारा संसाधनों के उपयोग के माध्यम से आर्थिक विकास कैसे संचालित होता है। 

अध्ययन का विषय

आर्थिक भूगोल का मुख्य उद्देश्य विभिन्न आर्थिक गतिविधियों और उनकी भौगोलिक स्थिति के बीच संबंधों का विश्लेषण करना है। यह यह जांचता है कि उत्पादन, वितरण और उपभोग जैसी गतिविधियाँ भौगोलिक कारकों से किस प्रकार प्रभावित होती हैं।

मुख्य क्षेत्र और विषय

आर्थिक भूगोल कई प्रमुख क्षेत्रों और विषयों से संबंधित है, जिनमें शामिल हैं —
  • उद्योगों का स्थान: उत्पादन केंद्रों का भौगोलिक वितरण और उनका चयन।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान।
  • अचल संपत्ति: भूमि और भवनों के उपयोग व मूल्य का भौगोलिक विश्लेषण।
  • जेंट्रीफिकेशन: शहरी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया।
  • जातीय और लैंगिक अर्थव्यवस्थाएँ: समुदायों और लैंगिक भूमिकाओं के अनुसार आर्थिक सहभागिता का अध्ययन।
  • पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संबंध: प्राकृतिक संसाधनों और आर्थिक विकास के पारस्परिक प्रभावों का विश्लेषण।

आर्थिक भूगोल का महत्व

आर्थिक भूगोल को एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय माना जाता है क्योंकि यह समाज के सुचारू संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पहलुओं से संबंधित है। यह अध्ययन करता है कि विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ, जैसे उत्पादन, वितरण और उपभोग, भौगोलिक परिस्थितियों से कैसे प्रभावित होती हैं। इस प्रकार, यह विषय मानव जीवन और आर्थिक विकास के बीच संबंधों को समझने में सहायक है।

उद्भव और विकास

आर्थिक भूगोल की उत्पत्ति के संबंध में निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि इसकी शुरुआत सबसे पहले किसने की थी। फिर भी, यह स्पष्ट है कि समय के साथ कई प्रमुख भूगोलवेत्ताओं के योगदान से इस क्षेत्र का विकास हुआ। प्रारंभ में यह भूगोल और अर्थशास्त्र दोनों की शाखाओं के रूप में विकसित हुआ और बाद में एक स्वतंत्र अध्ययन क्षेत्र के रूप में उभरा।

आर्थिक भूगोल के जनक

भूगोलवेत्ता जॉर्ज चिशोल्म को आर्थिक भूगोल का जनक माना जाता है। उन्होंने इस विषय पर पहली पाठ्यपुस्तक लिखी, जिसने इस क्षेत्र को एक संगठित रूप प्रदान किया। उनके योगदान ने आर्थिक भूगोल को एक वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जॉर्ज चिशोल्म के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जॉर्ज चिशोल्म का जन्म 1 मई, 1850 को स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एडिनबर्ग के रॉयल हाई स्कूल में प्राप्त की। आगे चलकर उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और 1870 में स्नातक की उपाधि अर्जित की। उनकी प्रारंभिक शिक्षा और अकादमिक पृष्ठभूमि ने आगे चलकर उन्हें एक प्रतिष्ठित भूगोलवेत्ता बनने की दिशा में प्रेरित किया।

शैक्षणिक और व्यावसायिक करियर

चिशोल्म ने 1883 से 1908 तक लंदन में भूगोल के क्षेत्र में व्याख्याता (Lecturer) के रूप में कार्य किया। इस अवधि में उन्होंने आर्थिक और वाणिज्यिक भूगोल से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। इसके पश्चात वे अपने गृहनगर एडिनबर्ग लौट आए, जहाँ उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने स्कॉटिश ज्योग्राफिकल सोसाइटी के सचिव के रूप में भी कार्य किया और इस पद पर लगातार 15 वर्षों तक अपनी सेवाएँ दीं, जिससे भूगोल के क्षेत्र में संस्थागत विकास को नई दिशा मिली।

मुख्य योगदान और रचनाएँ

  • 1923 में, चिशोल्म को उनके योगदान के लिए मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • वे विशेष रूप से अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हैंडबुक ऑन कमर्शियल ज्योग्राफी” (Handbook on Commercial Geography) के लिए जाने जाते हैं, जो 1889 में प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक आर्थिक भूगोल पर लिखी गई पहली पाठ्यपुस्तक मानी जाती है।
समय-समय पर इसमें संशोधन और अद्यतन किए गए फिर भी यह लंबे समय तक प्रासंगिक और प्रभावशाली बनी रही। इस रचना ने आर्थिक भूगोल को एक स्वतंत्र और वैज्ञानिक अध्ययन क्षेत्र के रूप में स्थापित करने में आधारशिला का कार्य किया।

मृत्यु

9 फरवरी, 1930 को एडिनबर्ग में एक ट्राम में सफर करते समय उनकी मृत्यु हो गई।

जॉर्ज चिशोल्म के काम का महत्व

आर्थिक भूगोल की वर्तमान प्रासंगिकता

आर्थिक भूगोल एक अत्यंत प्रासंगिक विषय है जिसका महत्व वर्तमान समय में भी उतना ही है जितना भविष्य में होने की संभावना है। यह हमारे ग्रह पर होने वाली विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के वितरण और उनके स्थानिक स्वरूप का अध्ययन करता है। अपनी व्यापकता और उपयोगिता के कारण इसे एक पारंपरिक, मूलभूत तथा निरंतर विकसित होने वाला विषय माना जाता है। बदलती वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद, यह विषय आज भी उतना ही प्रासंगिक है और आर्थिक दृष्टि से मानव जीवन को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

महत्ता और उपयोगिता

आर्थिक भूगोल का उपयोग विभिन्न आर्थिक आँकड़ों के विश्लेषण के लिए किया जाता है, जिसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों की आर्थिक संरचनाओं, संसाधनों और उनकी भौगोलिक निर्भरता को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि किसी विशेष क्षेत्र की आर्थिक प्रणाली किस प्रकार दुनिया के अन्य हिस्सों से जुड़ी होती है और उसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है।

अर्थशास्त्र में भूमिका

आर्थिक भूगोल का उपयोग केवल भूगोल के क्षेत्र तक सीमित नहीं है। अर्थशास्त्रियों द्वारा भी इस विषय का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह उन्हें विभिन्न क्षेत्रों की आर्थिक गतिविधियों और विकास के पैटर्न को समझने में सहायता करता है। इस विषय की मदद से अर्थशास्त्री आर्थिक सुधार, क्षेत्रीय विकास और संतुलित औद्योगिक नीति जैसे विषयों पर ठोस विश्लेषण प्रस्तुत कर पाते हैं।

व्यावहारिक उपयोग और लाभ

आर्थिक भूगोल हमें यह सिखाता है कि किसी विशिष्ट क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ स्थापित करने के लिए वहाँ की भौगोलिक विशेषताएँ कितनी महत्वपूर्ण होती हैं। इसके माध्यम से हम यह पहचान सकते हैं कि कौन से प्राकृतिक संसाधन किन देशों या क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त हैं, और उसके अनुसार उद्योगों का सर्वोत्तम स्थान निर्धारित किया जा सकता है।

इस प्रकार, आर्थिक भूगोल वह माध्यम है जिसके द्वारा हम मानव, संसाधन और पर्यावरण के बीच आर्थिक संबंधों को गहराई से समझ पाते हैं तथा सतत विकास के लिए ठोस दिशा प्राप्त करते हैं।

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