आखिर पर्माफ्रॉस्ट होता क्या है?
पर्माफ्रॉस्ट की परिभाषा
नासा के अनुसार, पर्माफ्रॉस्ट उस भूमि को कहा जाता है जो लगातार दो वर्षों या उससे अधिक समय तक पूरी तरह जमी रहती है। इस अवधि में भूमि की ऊपरी परत ठोस बर्फ के रूप में जमी रहती है, जिसे पिघलने में वर्षों लग सकते हैं।
तापमान की स्थिति
पर्माफ्रॉस्ट का तापमान सामान्यतः -32°F (0°C) या उससे नीचे होता है। इतनी ठंड की स्थिति में भूमि का जल भाग ठोस रूप ले लेता है, जिससे उसकी नमी और तापमान दोनों स्थिर बने रहते हैं।
स्थानिक वितरण
पर्माफ्रॉस्ट मुख्य रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों के उच्च अक्षांशों और पर्वतीय क्षेत्रों की ऊँचाई पर पाया जाता है। ये क्षेत्र वर्ष के अधिकांश समय अत्यधिक ठंडे रहते हैं जो पर्माफ्रॉस्ट के निर्माण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं।
बर्फ आवरण की स्थिति
यह ध्यान देने योग्य है कि भले ही पर्माफ्रॉस्ट की भूमि जमी हुई होती है, परंतु ये क्षेत्र हमेशा बर्फ से ढके नहीं रहते। कुछ स्थानों पर सतह सूखी या वनस्पति से ढकी दिखाई देती है, जबकि भीतर की परतें जमी हुई रहती हैं।
वैश्विक विस्तार
पर्माफ्रॉस्ट के विस्तृत क्षेत्र पृथ्वी के दोनों गोलार्धों उत्तरी और दक्षिणी में फैले हुए हैं। विशेष रूप से, यह साइबेरिया, अलास्का, कनाडा, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका जैसे ठंडे क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है।
क्या आप जानते है पर्माफ्रॉस्ट किससे बना होता है?
पर्माफ्रॉस्ट की संरचना
बर्फ से बंधी मिट्टी, चट्टानें और रेत मिलकर पर्माफ्रॉस्ट का निर्माण करती हैं। यह मिश्रण लंबे समय तक जमी रहने के कारण ठोस रूप में बना रहता है।
ऊपरी और निचली परतों की स्थिति
पर्माफ्रॉस्ट की निचली परतें पूरे वर्ष जमी रहती हैं, जबकि ऊपरी परत गर्मियों में पिघल सकती है। यह ऊपरी परत मौसम के परिवर्तन के साथ बार-बार जमती और पिघलती रहती है।
कार्बनिक पदार्थ की उपस्थिति
ऊपरी परत में प्रायः मृत और सड़ते हुए पौधों से प्राप्त कार्बनिक कार्बन पाया जाता है। पिघलने की छोटी अवधि में इस परत पर कुछ वनस्पतियाँ उग सकती हैं, जो कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाती हैं।
सक्रिय परत की मोटाई
इस ऊपरी परत को "सक्रिय परत" (Active Layer) कहा जाता है। इसकी मोटाई तापमान और क्षेत्रीय परिस्थितियों के आधार पर भिन्न होती है - ठंडे क्षेत्रों में यह पतली और अपेक्षाकृत गर्म क्षेत्रों में मोटी होती है।
दुनिया में अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट के सबसे बड़े विस्तार वाले क्षेत्र कौन कौन से है?
अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट की परिभाषा
अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट वह प्रकार का पर्माफ्रॉस्ट है जो पहाड़ों या ऊँचे पठारों की ऊँचाई पर पाया जाता है। यह ऊँचाई पर मौजूद ठंडी जलवायु और निम्न तापमान के कारण बनता है।
तिब्बती पठार: विश्व का सबसे बड़ा अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र
- तिब्बती पठार, जो चीन, भारत और भूटान के कुछ हिस्सों में फैला है और पूर्वी एवं मध्य एशिया में लगभग पूरे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को कवर करता है, दुनिया का सबसे बड़ा अनुमानित अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र माना जाता है।
- यह विस्तृत ऊँचा पठार वैश्विक जलवायु और हिमनद प्रक्रियाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
अन्य प्रमुख अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र
- अल्ताई पर्वत (मध्य और पूर्वी एशिया) - दूसरा सबसे बड़ा अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट विस्तार।
- ब्रूक्स पर्वतमाला (सुदूर उत्तरी उत्तरी अमेरिका) - तीसरा सबसे बड़ा अल्पाइन पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र।
क्या आप जानते है जलवायु परिवर्तन पर्माफ्रॉस्ट को प्रभावित कर सकता है?
जलवायु परिवर्तन और पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना
ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव के साथ पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना एक गंभीर वैश्विक चिंता बन गया है।
यह परिवर्तन पृथ्वी के पारिस्थितिक संतुलन को प्रभावित कर रहा है और मानव, वन्यजीव तथा पर्यावरण सभी के लिए विनाशकारी परिणाम उत्पन्न कर सकता है।
मानव बस्तियों पर प्रभाव
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उस पर बसी मानव बस्तियाँ अस्थिर हो जाती हैं।
- जमीन की धंसने, झुकने या फटने की घटनाएँ बढ़ने लगती हैं जिससे भवनों, सड़कों और पाइपलाइनों को नुकसान पहुँचता है।
- इस कारण कई क्षेत्रों में लोगों को अपने घर छोड़ने या पुनर्वास की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
जब पर्माफ्रॉस्ट की सक्रिय परत पिघलती है, तो उसमें मौजूद कार्बनिक कार्बन का विघटन शुरू हो जाता है।
इस प्रक्रिया से मीथेन (CH₄) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) जैसी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं जो वायुमंडल में तापमान वृद्धि को और बढ़ा देती हैं। इस प्रकार पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना जलवायु परिवर्तन के दुष्चक्र को और तेज़ कर देता है।
प्राचीन सूक्ष्मजीवों का पुनः सक्रिय होना
- पिघलते पर्माफ्रॉस्ट की परतों से हज़ारों वर्षों से जमे हुए वायरस, बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीव पुनः सक्रिय हो सकते हैं।
- इन प्राचीन रोगाणुओं के प्रति मनुष्य और अन्य जीवों में प्राकृतिक प्रतिरक्षा नहीं होती जिससे नई या पुनर्जीवित बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। यह स्थिति वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक नई चुनौती बन सकती है।
